Showing posts with label आज़मी. Show all posts
Showing posts with label आज़मी. Show all posts

Saturday, June 1, 2013

कैफ़ी आज़मी, गुलाम मोहम्मद, नौशाद, लता मंगेशकर - पाकीज़ा - चलते चलते यूँ ही कोई मिल गया था


चलते चलते यूँ ही कोई मिल गया था

चलते चलते,
यूँही कोई मिल गया था,
सरे राह चलते चलते
वही थम के रह गयी हैं,
मेरी रात ढलते ढलते

जो कही गयी ना मुझ से,
वो ज़माना कह रहा हैं
के फ़साना बन गयी है,
मेरी बात चलते चलते

शब-ए-इंतज़ार आखिर,
कभी होगी मुक्तसर भी
ये चिराग बुझ रहे है,
मेरे साथ जलते जलते